“इक घरौंदा मैंने देखा था”

“इक घरौंदा मैंने देखा था” यों राह गुज़रते, चलते आज; इक घरौंदा मैंने देखा था... मज़दूरी के उन हाथों को; धरती से लिपटते देखा था... जिस्मों में छिपी परिश्रान्ति को ; करवट में बदलते देखा था... फ़िर ख़ुद से मिलकर मैंने ज्यों; नज़रों को उठाकर देखा तो, आँखों में समाहित तूफां को; थिर जल में... Continue Reading →

“परीक्षित”

परीक्षित तुम सचमुच परीक्षित ही थे | सपनों का संसार सजाकर , जीवन को गुल सा महकाकर , अरमानों का महल बनाकर , कुछ बहलाकर , कुछ समझाकर तुम गए गगन के पार , कर रहे हम सब तुमको याद | पलकों पर सपने सजाकर , होठों को मुस्कान दिलाकर , पल-पल आशा दीप जलाकर... Continue Reading →

“लो आया ऋतुराज वसंत”

लो आया ऋतुराज वसंत , ऋतुओं का सरताज वसंत , जीवन का उल्लास वसंत , प्रियजन का मिलाप वसंत , बस जीवन का सार वसंत , लो आया ऋतुराज वसंत , ऋतुओं का सरताज वसंत || प्रकृति का श्रृंगार वसंत , जीवन का हर राग वसंत , ख़ुशबू का घर-द्वार वसंत , आशा का उद्गार... Continue Reading →

“उमंग”- कुछ कर गुजरने की

स्वर्णिम किरण बनूँगी सूर्य की, रोशन कर दूंगी जग-संसार | मंझधार में फंसे लोगों की, मैं बनूँगी तारणहार | केवट बन , मैं उन्हें सही राह पर पहुचाऊंगी | तुम्हारे दिए संस्कारों की महक इस संसार में फैलाऊँगी | मुझे पढ़ने का अवसर तो दो, मैं खुद को साबित करके दिखलाऊँगी | वर्ना , कैसे... Continue Reading →

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